*।। श्रीरामचरितमानस - विचार ।।*
सुनु रावन परिहरि चतुराई।
भजसि न कृपासिंधु रघुराई।।
जौं खल भएसि राम कर द्रोही।
ब्रह्म रूद्र सक राखि न तोही ।।
( लंकाकांड 26/1 )
अंगद को दूत बनाकर रावण के दरबार में उसे समझाने के लिए भेजा गया है। अंगद जाकर रावण को उसकी वास्तविकता तथा राम जी की बड़ाई करते हैं । रावण अपनी बड़ाई करता है और राम जी के लिए दुर्वचन बोलता है। अंगद कहते हैं कि हे रावण सुन ! तू चतुराई छोड़कर कृपा के सागर राम जी का भजन कर ले । यदि तुमने राम जी से वैर किया तो ब्रह्मा और रूद्र भी तुम्हें नहीं बचा सकेंगे ।
मित्रों ! भजन करें तो चतुरता जाती है, हम भजन करते नहीं हैं इसीलिए विरोध कर नष्ट हो जाते हैं। अस्तु! अपने को नष्ट होने से बचाना चाहते हैं तो भजन करें, चतुरता आदि सब बुराइयाँ छूट जाएगी। अथ ! भज मन राम भज , राम भज राम भज , राम राम भज।
*astrosanjaysinghal*