*।। श्रीरामचरितमानस - विचार ।।*
मंगल सगुन होहिं सब काहू।
फरकहिं सुखद बिलोचन बाहू।।
भरतहि सहित समाज उछाहू।
मिलिहहिं रामु मिटिहि दुख दाहू।।
( अयोध्याकाण्ड 224/1 )
भरत जी चित्रकूट जाते समय मार्ग में राम जी के बारे में जो मिलता है उससे पूछते हुए जा रहें हैं, जो उनके बारे में बताते हैं उसे सुनकर भरत जी वहीं रात बिताते हैं और दूसरे दिन आगे चलते हैं। सबको मंगल सूचक शकुन हो रहा है, लोगों के नेत्र व भुजाएँ फड़क रही हैं, सब यह सोचकर प्रसन्न हैं कि राम जी मिलेंगे और दुख का ताप समाप्त हो जाएगा ।
मित्रों ! जब आप राम जी में लग जाते हैं तभी से आपको मंगल शकुन होने लगते हैं और फिर राम दर्शन से तो दुःख की पीड़ा ही दूर हो जाती है । अतः राम जी में लगें और अपने जीवन की पीर मिटा लें। अथ ! जय राम, जय राम, जय जय राम।
*astrosanjaysinghal*