*।। श्रीरामचरितमानस - विचार ।।*
जौं मन बच क्रम मम उर माहीं।
तजि रघुबीर आन गति नाहीं।।
तौं कृसानु सब कै गति जाना।
मो कहुँ होउ श्रीखंड समाना।।
( लंकाकांड 108/4 )
राम जी ने रावण का वध कर दिया है, राम जी ने हनुमान जी व विभीषण को सीता जी को सादर लिवा आने के लिए कहा है। सीता जी आती हैं, राम जी वास्तविक सीता को पाने के लिए कुछ दुर्वचन बोलते हैं, लक्ष्मण जी अग्नि लाते हैं। सीता जी कहती हैं कि मन, वचन व कर्म से यदि मेरे हृदय में राम जी छोड़ कर किसी अन्य का आश्रय नहीं है तो अग्नि देव, आप सबके मन की गति जानते हैं, मेरे लिए चंदन के समान शीतल हो जाएँ।
मित्रों ! मन वचन कर्म से यदि आप भी राम जी में लगें हैं तो आपके जीवन में ताप की जगह शीतलता आ जाएगी, प्रतिकूल आपके अनुकूल हो जाएगा। अतः! मन वचन कर्म से, राम राम जय राम राम।
*astrosanjaysinghal*