*।। श्रीरामचरितमानस - विचार ।।*
कहहु भगति पथ कवन प्रयासा ।
जोग न मख जप तप उपवासा ।।
सरल सुभाव न मन कुटिलाई।
जथा लाभ संतोष सदाई ।।
( उत्तरकांड 45/1 )
एकबार राम जी ने सभी नगरवासियों को बुलाया है और कहा कि आप सब सुख चाहते हैं तो मेरी भक्ति करें । इसमें बहुत परिश्रम नहीं है । इसमें योग , यज्ञ , जप , तप , उपवास आदि करने की भी आवश्यकता नहीं है । इसमें तो सरल स्वभाव, मन में कुटिलता का न होना और जो कुछ मिलें उसी में सदा संतोष करने की आवश्यकता होती है ।
मित्रों ! हममें यह सब कुछ नहीं है । मन भजन में लगे, राम गुणगान में लगे तो यह सारे गुण स्वतः चलें आएँगे, अलग से प्रयास करने की ज़रूरत नहीं , अतः अपना भजन बढ़ाएँ, राम भक्ति पाएँ। श्रीराम जय राम जय जय राम।
*astrosanjaysinghal*