श्री राम।

।। जीवन की सार्थकता ।।* मनुष्य जीवन की सार्थकता तो यही है, कि इसे उपयोगी बनाकर जिया जाए, उपभोगी बनाकर नहीं। जीवन को उपयोगी बनाकर जीने का अर्थ है, कि उस वृक्ष की तरह जीवन जीना जिसका अंकुरित होना, पल्लवित होना, पुष्पित होना और फलित होना केवल परमार्थ के लिए होता है। अपने प्रत्येक कर्म को परहित की भावना से करना ही जीवन को उपयोगी बनाकर जीना है। यदि आपकी अनुपस्थिति दूसरों को रिक्तता का अनुभव कराने वाली है तो कहीं न कहीं उनके लिए आपका जीवन उपयोगिता भरा है। जीवन को उपभोगी बनाने का सीधा सा अर्थ है, कि उन पशुओं की तरह जीवन जीना केवल और केवल उदर पूर्ति ही जिनके जीवन का एक मात्र लक्ष्य है। ये बात सदैव स्मरण रहे कि इस दुनिया में जो उपयोगी है, वही मूल्यवान भी है। *आज का दिन शुभ मंगलमय हो।* *astrosanjaysinghal*