*।। गीता जी की शरण में कर्तव्य बोध ।।*
असमंजस में पड़ा प्रत्येक व्यक्ति ही अर्जुन है। मनुष्य मन की वह स्थिति जब वो किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है उसी का प्रतिकात्मक रूप अर्जुन है। जीवन में जब - जब अनिर्णय की स्थिति में पहुँच जाओ और विवेक आपका साथ ना दे रहा हो कि आखिर कौन से मार्ग पर आगे बढ़ा जाए..? तो तब - तब आप गीता जी की शरण में चले जाना।
गीता जी हमें प्रत्येक अनिर्णय की स्थिति से बाहर निकालकर वास्तविक एवं श्रेष्ठ कर्तव्य का बोध कराती है। गीता की शरण में जाने के बाद अर्जुन ने कहा कि मेरा मोह नष्ट हो गया है और मैंने अपनी उस स्मृति को प्राप्त कर लिया है जो मुझे मेरे कर्तव्य पथ का बोध कराती है।
ठीक इसी प्रकार अर्जुन की ही तरह गीता जी द्वारा अपने प्रत्येक शरणागत जीव के संशयों का नाश कर उसे उसकी वास्तविक स्थिति एवं कर्तव्यों का बोध कराया जाता है।
_जीवन के सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन का नाम ही श्रीमद्भगवद्गीता है।_
श्री कृष्ण भगवान की शिक्षाओं के द्वारा हम सभी एक उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ें।
*astrosanjaysinghal*