श्रीमद्भगवद्गीता

।। श्रीमद्भगवद्गीता ।।* श्रीमद्भगवद्गीता कि सुंदरता यह है कि जिस स्तर पर आप हैं, उसी स्तर पर भगवान समाधान देते है। यह तभी समझ में आता है। जब अर्जुन के प्रश्न ठीक से समझा जाय। जैसे निष्काम कर्म योग कोई एक अवस्था नही है। कई अवस्थाओं से चलती एक प्रक्रिया है। प्रथम अवस्था *भौतिक* है ! यदि आप यह कहते हैं। कि मैं ही कर्ता हूँ। तो ईश्वर कहते हैं। ठीक है, तब सभी कर्मो और उसके परिणाम को स्वीकार करो। यह भी एक साधना है। दूसरी अवस्था *धार्मिक* है। मैं कर्ता तो हूँ, लेकिन नियंता कोई और है। इस पर ईश्वर कहते हैं। तो ठीक है। तुम सभी परिणामों में समत्व भाव रखो। *सूखे दुखे समे कृत्वा।* तीसरी अवस्था आध्यात्मिक है। मैं कर्ता ही नहीं हूँ। ईश्वर कहते है। फिर तुम मुझमें ही समर्पित हो जाओ। *मामेकं शरणम वज्र।* *astrosanjaysinghal*