श्रीमद्भगवद्गीता

*।। जीवन यात्रा की शुरुआत और लक्ष्य का बोध ।।* इस संसार से परिचित होते ही प्राणी की यात्रा प्रारंभ हो जाती है। यह तथ्य केवल मनुष्य पर ही चरितार्थ नहीं होता है, कदाचित सभी जीवों पर भिन्न-भिन्न रूप में होता है। किन्हीं दो प्राणियों की जीवन यात्रा कभी एक सी नहीं हो सकती, मनुष्यों के लिए तो सर्वथा नहीं। मनुष्य सांसारिकता का बोध होते ही अपने लक्ष्य को जानने-समझने लगता है। इस तरह उसकी यथावत जीवन यात्रा प्रारंभ हो जाती है। ऐसा न होने पर उसे भटकन ही हाथ लगती है। भटकन जीवन की सबसे बड़ी शत्रु है, क्योंकि यह समय, ऊर्जा और अवसरों को व्यर्थ गँवाती है। बिना स्पष्ट लक्ष्य के मनुष्य एक नाव की तरह होता है जो समुद्र में बिना पतवार के बहती चली जाती है। भटकन से परे होने के लिए, अधिक नहीं तो एक सुविचार, प्रेरणा, अध्यात्म का दिया जलाना होगा। यह छोटा-सा दिया अंधेरे में मार्ग दिखाने की शक्ति रखता है और आत्मविश्वास जगाता है। कठिनाई भले हो, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करनी होगी। क्योंकि प्रयास ही सफलता की कुंजी है—बिना संघर्ष के कोई बड़ा लक्ष्य हासिल नहीं होता। जो व्यक्ति दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ता है, वही जीवन की इस यात्रा को सार्थक बना पाता है। अंत में, यही लक्ष्य का बोध हमें सच्ची शांति और संतोष प्रदान करता है। *आज का दिन शुभ मंगलमय हो।* *astrosanjaysinghal*