श्रीमद्भगवद्गीता

*।। हर मनुष्य का निजी मंत्र।।* मंत्र मात्र वही नहीं होते जो आपको सद्गुरु देते हैं या महात्मा देते हैं। मंत्र वह भी होते हैं जो हम अपने जीवन मे बारंबार अपने मन मे दोहराते रहते हैं। चाहे वह जीवन मे किसी लक्ष्य के प्राप्ति के संबंध में हो या जीवन मे असफलताओं के संदर्भ में हो। जब लक्ष्य के प्राप्ति के सन्दर्भ में जब हम बार बार दोहराते हैं तो वह संकल्प बन जाता है। आत्म विश्वास को सुदृढ़ करता है। परन्तु संसार मे आप जो भी लक्ष्य रख लेते हैं, उसकी प्राप्ति के मार्ग में अत्यंत कठिन प्रतिस्पर्धा है। जो आपका लक्ष्य है वही सैकड़ो, हजारों, करोड़ो लोगों का लक्ष्य है। दो ही लक्ष्य प्रमुख हैं मानव जीवन में। धन, पद और प्रतिष्ठा। इसीलिये प्ररिस्पर्धा बहुत अधिक है। प्रतिस्पर्धा के कारण मन में आंशका, संशय और अनिश्चित्ता का जन्म होता है। पता नहीं मिलेगा या नहीं मिलेगा। यह संशय मन में भय उत्पन्न करता है। मन में नकारत्मक भाव उत्पन्न करता है। जिसे स्ट्रेस कहते हैं। अब यदि आपका मन किस मंत्र को अधिक दोहराता है, लक्ष्य प्राप्ति के प्रति संकल्प को, या लक्ष्य के मार्ग में उपस्थित बाधाओं के कारण भय और नकारात्मकता को? मन जिस भी मार्ग पर आगे बढ़ेगा वही हमारा मंत्र बन जायेगा और यह मंत्र हमारा इनवेस्टमेंट है निवेश है। वह हमें अपने जीवन मे चक्रविधि ब्याज समेत हमें वापस मिलेगा। *astrosanjaysinghal*