श्रीमद्भगवद्गीता

*।। जब तक दूसरे हमें खुश-नाखुश कर सकें, हम गुलाम हैं ।।* जीवन कितना विचित्र है कि हमारे जीवन का नियंत्रण अन्य लोगों के हाथों में रहता है। वे चाहें तो हमें खुश रखें, वे चाहें तो हमें रूष्ट कर दें, अप्रसन्न कर दें। कैसा विचित्र है यह जीवन ? कभी सोचा है? हम क्या कोई कठपुतली हैं? हां हम कठपुतली हैं। कृष्ण कहते हैं - *भ्रामयन सर्व भूतनाम यंत्र आरूढानि मायया।* यंत्रवत जीना ही कठपुतली जैसा जीवन है। यंत्रवत का अर्थ है कि संसार हमारा मालिक है। हम नहीं। कोई आकर प्रसंशा कर दे। दो मीठे बोल बोल दे। हम आह्लादित हो जाते हैं। कोई आकर कटु वचन बोल दे, हमारा रक्त उबलने लगता है। इसका तो यही न अर्थ हुआ कि हमने स्वयं के अपमानित और प्रशंसित होने की बागडोर अन्य लोगों के हाथ में छोड़ रखी है। दूसरे लोग हमारे मालिक हैं। और हम हैं उनकी कठपुतलियां l पहले तो रोग की डायग्नोसिस बननी चाहिए उसकी चिकित्सा होने के पूर्व। आज अपने अंदर झांकिए और देखिए कि इस समस्या से हम ग्रस्त हैं या नहीं? *astrosanjaysinghal*