*।। श्रीमद्भगवद्गीता ।।*
_साधना और भक्ति_
अर्जुन जैसा भक्त होना बहुत दुर्लभ है। यह अर्जुन कि साधना और भक्ति है। जो ईश्वर उनको अपना विश्वरूप दिखाये।
स्वयं भगवान कह रहे है -
हे अर्जुन! योग , ध्यान , साधना, तप से जो मेरा स्वरूप सिद्धपुरुष नहीं देख सके, वह तुम देखो। ऐसा सौभाग्य इस जगत में किसी को नहीं मिला।
*आप, यहां पे ये पूछ सकते है यह कैसे कह सकते है कि अर्जुन जैसा कोई भक्त नहीं हुआ ?*
इसका सीधा उत्तर हैं कि, आंतरिक जगत में ईश्वर और भक्त एक ही है।
लेकिन यह समझने का प्रयास करें कि, श्रीकृष्ण ने अर्जुन को नहीं चुना। अर्जुन ने श्रीकृष्ण को चुना है।
यह अर्जुन का समर्पण है। ईश्वर सैदव समर्पण देखते है।
आप कहते हो कैसे ?
आज भारत की 1.5 अरब जनसंख्या में एक व्यक्ति नहीं है।
जो नारायणी सेना कि जगह श्रीकृष्ण का चुनाव करे।
मंदिरों में लगने वाली भीड़ क्या ईश्वर को मांगती है। वह तो अपने लिये ही सब कुछ मांगती है।
*नारायणी सेना ! इस भौतिक संसार की प्रतीक है। जिसमें धन है , वैभव है , सम्बंध है , समाज है। हमारा चुनाव तो नारायणी सेना ही है।*
ईश्वर ! अकेले , निहत्थे खड़े है। कोई उनका भक्त आये उनको मांग ले।
मात्र अर्जुन ऐसे है। जब उन्हें नारायणी सेना और ईश्वर का विकल्प दिया गया तो वह ईश्वर को चुनते है।
ईश्वर तो तटस्थ है।
जिसको उनको पाना है, तो इस संसार से उपर उठकर उनका चुनाव करना होगा।
बात अर्जुन कि है तो उनके समान योद्धा और उन जैसा भक्त , बहुत कम या कहो कि हुये ही नहीं, तो गलत न होगा।
*astrosanjaysinghal*