दुर्गा सप्तशती:शक्ति की आराधना का द्वार
दुर्गा सप्तशती, जिसे 'देवी महात्म्य' भी कहा जाता है,एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली ग्रंथ है। यह मार्कण्डेय पुराण का एक भाग है, जिसमें 700 श्लोक हैं जो आदिशक्ति माँ दुर्गा के महान पराक्रम और महिमा का वर्णन करते हैं।
इसका पाठ मुख्यतः नवरात्रि के दौरान किया जाता है, लेकिन किसी भी समय किया गया इसका पाठ भक्तों को अद्भुत लाभ प्रदान करता है।
दुर्गा सप्तशती पाठ का आध्यात्मिक महत्व-
दुर्गा सप्तशती का पाठ मात्र एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू को प्रभावित करने वाली एक आध्यात्मिक साधना है।
1. बुराई पर विजय और संकटों का नाश:
इस ग्रंथ का केंद्रीय विषय देवी दुर्गा द्वारा राक्षसों (जैसे महिषासुर, शुंभ और निशुंभ) का वध करके धर्म की रक्षा करना है। इसके तीन मुख्य चरित्र हैं:
प्रथम चरित्र (महाकाली): मधु-कैटभ का वध।
मध्यम चरित्र (महालक्ष्मी): महिषासुर का वध।
उत्तर चरित्र (महासरस्वती): शुंभ-निशुंभ का वध।
इसका पाठ करने से साधक के आंतरिक और बाहरी शत्रुओं, बाधाओं और जीवन के सभी प्रकार के संकटों का नाश होता है।
2. आध्यात्मिक शक्ति का संचार:
दुर्गा सप्तशती के 700 श्लोक (मंत्र) अत्यंत शक्तिशाली होते हैं। ये श्लोक न केवल देवी की स्तुति करते हैं, बल्कि ध्वनि और कंपन के माध्यम से साधक के शरीर में एक विशेष ऊर्जा का संचार करते हैं। यह पाठ नकारात्मकता को दूर करके सकारात्मकता और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।
3. भय से मुक्ति और सुरक्षा कवच:
इस ग्रंथ को एक 'सुरक्षा कवच' (ढाल) के रूप में देखा जाता है। माना जाता है कि इसका नियमित और विधिपूर्वक पाठ करने वाले भक्त को किसी भी प्रकार के भय, तंत्र-बाधा, दुर्घटना या अकाल मृत्यु का डर नहीं रहता। देवी स्वयं अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
4. चार पुरुषार्थों की प्राप्ति:
दुर्गा सप्तशती का पाठ जीवन के चारों पुरुषार्थों (उद्देश्यों) की प्राप्ति में सहायक माना जाता है:
धर्म (Dharma): धार्मिक और नैतिक जीवन।
अर्थ (Artha): धन और भौतिक समृद्धि।
काम (Kama): इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति।
मोक्ष (Moksha): जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति।
5. मन और बुद्धि की शुद्धि
देवी महात्म्य के पाठ से चित्त शुद्ध होता है और एकाग्रता बढ़ती है। महासरस्वती का वर्णन बुद्धि, ज्ञान और विद्या को प्रदान करने वाला है, जिससे व्यक्ति सही निर्णय लेने में सक्षम होता है।
पाठ से जुड़े आवश्यक नियम
यद्यपि फल की प्राप्ति श्रद्धा पर निर्भर करती है, फिर भी पाठ करते समय कुछ नियमों का पालन आवश्यक माना जाता है:
संक्षेप में पाठ: यदि पूरा पाठ संभव न हो तो 'सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्र' का पाठ करने से भी पूर्ण सप्तशती पाठ का फल प्राप्त हो जाता है।
शुद्धता: पाठ हमेशा स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र पहनकर और पूर्ण सात्विक भाव से करना चाहिए।
संकल्प: पाठ शुरू करने से पहले देवी के सामने अपनी इच्छा (संकल्प) व्यक्त करना चाहिए।
संक्षेप में, दुर्गा सप्तशती न केवल देवी दुर्गा की कथा है, बल्कि यह हर मनुष्य के लिए शक्ति, साहस और सफलता प्राप्त करने का एक सीधा और सिद्ध मार्ग है।